लोक कला व संस्कृति पर केंद्रित एनसीजेडसीसी की पत्रिका का नया अंक प्रकाशित
नई सदी के रंगमंच को चित्रों के साथ किया गया है रेखांकित
देश के आठ रंगकर्मियों के साथ शहर के प्रो.अमितेश का भी लेख है शामिल

 
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की लोककला एंव संस्कृति को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘कला संगम’ का चौथा अंक इस बार नई सदी के रंगमंच को समर्पित है। इससे पहले के तीन अंक लोक-कलाओं से संबंधित थे। केंद्र निदेशक प्रो. सुरेश शर्मा के मार्गदर्शन और अमिताभ श्रीवास्तव के संपादन में प्रकाशित नवीन अंक में विगत 23 साल के रंगमंच की विविधता को रेखांकित किया गया है। पत्रिका में रंगकर्मी संगम पांडेय ने 21वीं सदी की शुरुआत में नाट्योत्सव पर लिखा है कि आधुनिक युग में तकनीक में चाहे कितना बदलाव आ जाए रंगकर्म की कलात्मकता और निरंतरता अंतत: धन पर आश्रित होती है। वहीं लेखक रवीन्द्र पांडेय ने 21वीं सदी का हिंदी रंगमंच कुछ विचार विषय पर केंद्रित रंगकर्म के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और रंगमंच के प्रशिक्षण को बेहतर बनाने पर जोर दिया है। नाट्य निर्देशक प्रो.देवेन्द्र राज अंकुर ने ग्रीक थियेटर और संस्कृत कालीन रंगमंच में प्रशिक्षण के महत्व और तरीके पर गहराई से प्रकाश डाला है।
 जाने-माने लेखक गिरिजाशंकर मिश्र ने अपने आलेख में 20वीं सदी के मध्य से लेकर वर्तमान तक के 70-80 वर्षों का एक बेहतरीन खाका खींचा है। एम.के. रैना ने हिंदी रंगमंच की जिम्मेदारियों की ओर बखूबी से इंगित किया है। साथ ही रंगकर्म करने के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी को दूर करने के उपाए सुझाए हैं। वहीं इविवि हिंदी विभाग के प्रो. अमितेश कुमार ने इक्कीसवीं सदी के हिंदी रंगमंच के कुछ रंग को विस्तार से रेखांकित किया है। साथ ही प्रसन्ना ने नई सदी के हिंदी रंगमंच और केवल अरोड़ा ने भारतीय रंगमंच के पथ प्रदर्शक इब्राहिम अलकाजी के रंगमंचीय अवदान पर प्रकाश डाला है। पत्रिका में विषयवस्तु के अनुरूप चित्रों का कलात्मक संयोजन पत्रिका के आवरण आलेख को सारगर्भित बना रहा है।

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