काशी श्मशान घाट पर गुलाल नहीं चिता के भस्म की होती है होली


शिव कुमार प्रजापति ✍️
वाराणसी ।काशी में खेली जाने वाली मसान होली को चिता भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। चिता की राख से होली खेलने की परंपरा कई वर्षों पुरानी है। इस बार मसान होली 21 मार्च को अपना विकराल रुप दिखाया। इस दिन लोग चिता की राख से होली खेलते हैं और देवों के देव महादेव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक मसान की होली की शुरूआत भगवान शिव ने की थी. ऐसा माना जाता है रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ पहली बार माता पार्वती के साथ विवाह के बाद पहली बार काशी आए थे. उस दिन मां का स्वागत गुलाल के रंग से किया था. इसीलिए रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है. इस दिन शिव जी और माता पार्वती जी की विशेष पूजा का भी विधान है.
काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ ने भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ चिता की राख से भस्म होली खेली थी. ऐसा इसलिए क्योंकि रंगभरी एकादशी के दिन शिवजी ने अपने गणों के साथ गुलाल से होली खेली लेकिन भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ नहीं खेली इसीलिए रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मसाने की होली खेली जाती है. इसीलिए तब से काशी में मसाने की होली की यह परंपरा चली आ रही है.
इस दिन पूरा काशी क्षेत्र सुरक्षा घेरे में तब्दील रहता है। बाबा औघड़ के भेष में बारात निकाली जाती है। ढोल नगाड़ों के साथ धूमधाम से घाट पर पहुंचकर भस्म की होली अपना अद्भुत रंग छटा दिखता है।

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