स्कूल-कॉलेज आये दिन बढ़ रहे। आंकड़ों में डिग्रीधारियों की संख्या रोज बढ़ रही। लेकिन शिक्षा के इस विस्तार का जो असर समाज पर दिखना चाहिए था वह सही मायने में दिख नहीं रहा। आखिर ऐसा क्यों? इसके लिए शिक्षा, छात्र और समाज के अंतर्संबंधों पर एक नजर डालने की जरूरत है।

विद्या के समान आंख नहीं। विद्या के बिना मनुष्य अंधा हैं। शिक्षा अज्ञानता के अंधकार को नाश करती है। ज्ञान ज्योति फैला कर सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। इसतरह शिक्षा मनुष्य के जीवन में एक मशाल बनकर आती है इस मशाल की  रोशनी में मनुष्य अपना भला-बुरा समझ सकता है।पुस्तकों  के माध्यम से और दूसरों के अनुभव व ज्ञान को प्राप्त कर मनुष्य अपनी कल्पना को साकार कर सकता है। इसीलिए मनीषियों ने कहा है ,"  तमसो मा ज्योतिर्गमय।"

 छात्र या विद्यार्थी किसी देश के भविष्य होते है।  वे ही देश के भावी पीढ़ी के अगुआ या प्रतिनिधि हैं। उन्हीं के हाथों में देश की बागडोर आने वाली होती हैं। स्वभाविक है की किसी देश के विकास में वहाँ के छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। छात्र इस भूमिका को निभा सके इसके लिए जरूरी है जीवन से जुड़ी शिक्षा के माध्यम से उनका सही व्यक्तित्व  निर्माण। इतना ही नहीं शिक्षा काल में हमेशा रचनात्मक क्रिया - कलापों में उनका व्यस्त रहना भी आवश्यक हैं। लेकिन आज देखने को मिल रहा कि किताबी अध्ययन के अतिरिक्त  छात्रों की किसी प्रकार की न तो रचनात्मक व्यस्तता है और न उसके बारे में उन्हें सम्यक दिशा -निर्देश ही मिल रहा  हैं। छात्रों को इस स्थिति से उबार कर उन्हें अपेक्षित भूमिका के निर्वहन के लायक बनाने का दायित्व   शिक्षकों का है। वे ही छात्रों के मार्गदर्शक होते हैं। छात्रों  के भविष्य की नींव तो शिक्षक ही डालते हैं। छात्र तो कच्चे मिट्टी  के समान है,जिसे शिक्षक जिस रूप में चाहे जिस तरह चाहे, ढाल सकते हैं। अध्यापक की महत्ता प्रदर्शित करने के लिए कहा गया है: 
       गुरु गोविंद दोउ खड़े,काके लाँगू पाँय।
       बलिहारी गुरु आपनो,जिन गोविंद दियो बताए।।

विडंबना है कि आज सर्वत्र नैतिक पतन हो चुका है। स्वार्थ की भावना से ग्रसित अध्यापक और शिष्य अपने आदर्श को भूल चुके हैं। आज तो " गुरु गुड़ और चेला चीनी"वाली कहावत चरितार्थ हो रही। इस समय चतुर्दिक वातावरण अत्यंत दूषित हो गया हैं। सामाजिक जीवन में तरह -तरह के अपराधों का अनायास घटित होना आम बात है। 

समाज और देश को पटरी पर लाने के लिए आज शिक्षा, छात्र और अध्यापकों के रिश्ते को सुधारना आज की पहली जरूरत है। शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है ताकि छात्र अनुशासित और विवेकशील बन सकें। ऐसे ही छात्र समाज और देश को सही विकास की ओर ले जाने में भागीदारी निभा सकते हैं। 

रानी प्रियंका वल्लरी 
बहादुरगढ़ हरियाणा

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