दीपावली शिल्प मेले का सास्कृतिक कार्यक्रम सोमवार की शाम लोककलाकारों के नाम रही। मुक्ताकाशी मंच पर गीत, नृत्य की मोहक प्रस्तुतियां दर्शकों को मुग्ध करती रही। बड़ी संख्या में लोगों ने खरीददारी के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद उठाया। इस अवसर पर प्रयागराज की लोक गायिका रंजना त्रिपाठी ने संस्कार और देवी गीतों से मंच को सुशोभित किया। उन्होंने छठ के समय गाए जाने वाले पारंपरिक गीत ‘‘कांच ही बॉंसे की बहंगिया.... प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरीं। लाल-लाल आडुवल कै फूल पियर-पियर कलई प्रस्तुत कर समा बांध दिया। साथ ही दादरा जमुनिया कै डार मैं तोड़ लाई राजा और झूमर सहित कई लोकगीत गाकर श्रोताओं का खूब मनोरंजन किया।
सांस्कृतिक संध्या की दूसरी प्रस्तुति गिरिराज बिहारी ने तुलसीदास की रचना गाइये गणिपति जयवंदन व सरस्वती वंदना से की एवं कहरा, बरहमासा जैसे गीतों को गाकर वाहवाही लूटी।
बिरनवां हो दिल में दीयला जला ले - इसके पश्चात रामसुचित एव दल ने देश के प्रति अनुराग प्रकट करते हुए सोने कै चिरैया हमार देशवा, देवी गीत ऐ मइया हो पड़ी पइया बीच भंवर में मौरी नैया एवं दीपावली त्योहार पर संदेश देने के लिए दीपावली गीत ‘‘हर्षित हियरवा सुमन महका ला बिरनवां हो दिल में दीयला जला ले‘‘ गीत को श्रोताओं ने खूब सराहा।
लोक नृत्य से मन मोहा- प्रयागराज की सपना द्विवेदी एवं दल ने ‘‘मोरा बलमा बेदर्दी माने का बतिया‘‘ व मोरी कलैया सुकुमार चुभी जाला कंगनवा और जनि जा विदेशवा की ओर बलम हो की गीतों पर नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया।
उड़ता उड़त चिरैया से कहै कौसल्या मैया वो तनिक देखले आइया कैसे बाटे ललना हमार‘‘ भावपूर्ण लोक नृत्य से वहां पर बैठे लोगों को भावविभोर कर दिया।
14 दिनों तक चलने वाले दीपावली शिल्प मेले की छटा देखने के लिए दिन-प्रतिदिन लोगों की भीड़ उमड़ रही है। लोग खरीददारी के साथ ही साथ विविध व्यंजनों का स्वाद ले रहें हैं। लकड़ी के खिलौनों, हैण्डलूम से बनी चीजें व कालीन लोगों को खूब भा रहे है।
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