अपनी करनी का फल भुगतै, मान भाड़ और राजा।
 जो अनहोनी बातन में आवे, वोकर बन जाए बाजा।।
बहुत सी ऐसी कलाएं हैं जो समय के साथ और समाज के कुछ लोगों की गलतियों की वजह से लुप्त हो जाती है। ऐसी ही कहानी है नकल मान भाड़ की। अवधी लोक कथा पर आधारित लोकनाट्य "नकल मान भाड़ की" की प्रस्तुति उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में मासिक नाट्य योजना के अंतर्गत की गई। जिसका लेखन व निर्देशन भरत नाट्य संस्थान अयोध्या की ओर से श्री पी० के० गौड़ ने किया था। भाड़ कला एक जाति प्रधान कला थी जिससे लोगों का मनोरंजन होता था। इनको कई नामों से लोग जानते थे। कहीं बहरूपिया कहीं नट तो कहीं भाड़ इत्यादि। इस कला को करने वाले लोग राजाओं, महाराजाओं की जासूसी करते थे और ठगी भी। धीरे-धीरे इस जाति की तथा यह कला लुप्त हो जाती है।

एक बार एक राजा ने मान भाड़ से कहा कि कोई नकल दिखाओ तो इस कला को और कलाकार को जाने तथा इसके समाज में होने वाले फायदे को भी जाने। इस बात का फायदा उठाकर मान भाड़ मर जाने की नकल करता है और आत्मा बनकर वापस आता है। फिर सब को स्वर्ग ले जाने की बात करता है। इस बात में कई लोग झांसे में आ जाते हैं । राजा भी इसी झांसे में आ जाता है जो बाद में उसके लिए कष्टदाई होता है। जब राजा इस बात की वास्तविकता जानता है कि मान भाड़ उसे और अन्य लोगों को ठगने के लिए अपनी कला दिखाई है और मरने का नाटक किया है। इस बात से नाराज होकर राजा मान भाड़ को देश निकाला कर देते हैं। इस कारण से भाड़ जाति और कला के जानकार को भी देश छोड़कर जाना पड़ता है। हाश्य व्यंग के साथ इस लोकनाट्य में समाज को एक अलग दृष्टिकोण से प्रदर्शित किया गया है। लोकनाट्य को लोक गीतों, घुन, बोली नृत्यों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।

कार्यक्रम के समापन में केंद्र निदेशक प्रोफेसर सुरेश शर्मा जी की ओर से कलाकारों तथा दर्शकों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। मंच संचालन श्री मधुकांक  मिश्रा ने किया।

एक टिप्पणी भेजें

 
Top