दूध मानव जीवन के खान पान का विशिष्ट अंग है। दूध के बिना स्वास्थ्य अधूरा है। दूध संपूर्ण आहार है। दूध एक अपारदर्शी सफेद द्रव है,जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनाया जता है। गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। गाय का दूध पतला होता है। जो शरीर मे आसानी से पच जाता है। स्तनधारियों से प्राप्त दूध शाकाहार है या मांसाहार ये विवाद बड़ा पुराना है। वेगन मिल्क की परिभाषा जब से आई वैसे ही दूध शाकाहार और मांसाहार के बीच फंस गया। इस द्वन्द को इस प्रकार समझें - जब स्तनधारी प्राणियों के बच्चे गर्भ में पलते हैं तब वो अपनी खुराक अपनी माँ के द्वारा ली गई खुराक से पूरा करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि गर्भ में पलने और माँ के स्तन पान से बच्चा मांसाहारी नहीं हो जाता है। ये तो वही बात हुई कि जल शाकाहारी है या मांसाहारी। जल प्रकृति प्रदत्त है। जल पृथ्वी के नीचे से आता है न कि पेड़ पौधों से। पेड़ पौधों और जीव जंतुओं सभी को जल की आवश्यकता होती है। तभी तो कहा गया है जल ही जीवन है। मैं आपसे पूछता हूँ जल शाकाहार है या मांसाहार ? प्रकृति प्रदत्त चीजों के साथ मनुष्य को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। हमारा मानना है कि प्रकृति प्रदत्त सभी चीजें शाकाहार की श्रेणी में आती हैं। सिर्फ ये कहना कि पेड़ पौधों से प्राप्त चीजें शाकाहर हैं और जानवरों से प्राप्त चीजें मांसाहार हैं, ये गलत होगा। स्तनधारियों का दूध देना प्रकृति प्रदत्त है ये शाकाहार श्रेणी में आता है। दूसरे शब्दों में मांस पर निर्भर रहने वाला मांसाहारी और पेड़ पौधों से प्राप्त भोज्य पदार्थों पर निर्भर रहने वाला शाकाहारी कहलाता है। प्रकृति प्रदत्त चीजें यदि मांस जैसे भोज्य पदार्थ पर निर्भर हैं तो भी वह मांसाहारी की श्रेणी में आएँगे। जैसे बहुत से पेड़ पौधे कीट पतंगों को अपना भोजन बना लेते हैं। तो ऐसे पेड़ पौधे मांसाहारी की श्रेणी में आएँगे। जानवरों से प्राप्त गोबर, मूत्र, आदि मांस की श्रेणी में नहीं आते हैं। अतएव इनका उपभोग करने वाला मांसाहारी कैसे हो गया ? इसी प्रकार स्तनधारियों से प्राप्त होने वाला दूध मांस तो नहीं है फिर इसका उपभोग करने वाला मांसाहारी कैसे हो गया ? अतएव दूध को पीने वाला दूधाहारी कहलाएगा। जल को पीने वाला जलाहारी कहलाएगा। फल को खाने वाला फलाहारी कहलाएगा। इसी प्रकार साग सब्जी को खाने वाला शाकाहारी कहलाएगा। दूध को शाकाहार कहने में आपत्ति तब से होने लगी है जब से देश में वीगनिस्म (वेगन मिल्क) के बारे में जागृति आने लगी। वीगनिस्म, फ़ूड प्रोसेसिंग की देन है। फ़ूड प्रोसेसिंग प्रक्रिया के अंतर्गत पेड़ पौधों से प्रात चीजों की प्रोसेसिंग करके वेगन मिल्क का निर्माण होता है। वीगन मिल्क पौधे आधारित दूध होते हैं। जिसमें कम मात्रा में फैट पाया जाता है। जैसे सोया मिल्क, कोकोनट मिल्क, कैश्यू मिल्क, बादाम का दूध, ओट्स मिल्क आदि। वेगन मिल्क, दूध उत्पादन बढ़ाने में सहायक हो सकता है पर ये कहना कि स्तनधारी प्राणियों से प्राप्त दूध को पीना मांसाहार है तो ये भारत की संस्कृति पर प्रहार होगा। वेगन मिल्क पोषण का एक अच्छा स्रोत्र है। पौधों से उनके फल या बीज लेकर उनका प्रोसेस किया जाता है तब जा कर कहीं वेगन मिल्क का निर्माण होता है। दुधारू पशुओं से प्राप्त दूध बिना प्रोसेसिंग किये प्राप्त किया जा सकता है। वेगन मिल्क से ज्यादा अच्छा पोषण, दुधारू पशुओं से मिलने वाले दूध में होता है। अमेरिकी संस्था पेटा जानवरों के संरक्षण की बात करती है। पेटा (पशुओं के साथ नैतिक व्यवहार के पक्षधर लोग) एक पशु-अधिकार संगठन है। इसका मुख्यालय यूएसए के वर्जिनिया के नॉर्फोल्क में स्थित है। विश्व भर में इसके लगभग 20 लाख सदस्य हैं और यह अपने को विश्व का सबसे बड़ा पशु-अधिकार संगठन होने का दावा करता है। इन्ग्रिड न्यूकिर्क इसके अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पेटा पशुओं के प्रति इतना सम्मान रखती है तो दुधारू पशुओं को बीफ के रूप में क्यों खाया जाता है ? पेटा पशुओं के प्रति इतना प्रेम रखती है तो विश्व में पशु क्यों काटे जाते हैं ? पेटा को वेगन मिल्क और दुधारू पशुओं से मिलने वाले मिल्क पर बहस न करके पशुओं के कटने - काटने पर रोक लगाने सम्बन्धी विषय पर शोध करना चाहिए। पेटा को दुधारू पशुओं से मिलने वाले दूध से द्वेष नहीं होना चाहिए। 'आरोग्य गीता' में लिखा है कि चेहरे की चमक को प्राकृतिक रूप से निखारने के लिए 'पंचगव्य (गोमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी) दुनिया की सर्वश्रेष्ठ दवा है। सरकार ने मार्च 2020 से गोबर से पेंट बनाने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग को प्रेरित किया था। जिसके बाद खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की जयपुर में स्थित यूनिट कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट ने इसके लिए एक फैक्ट्री भी बनाई। जहां लोगों को गोबर से पेंट बनाने की कला को सिखाया जाता है। सरकार ने गोबर से कागज बनाने का सफल प्रयोग कर लिया है। एमएसएमई मंत्रालय के तहत देश भर में इस प्रकार के प्लांट लगाने की योजना तैयार की जा रही है। कागज बनाने के लिए गोबर के साथ कागज के चिथड़े का इस्तेमाल किया जाता है। नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट में गाय के गोबर से पेपर बनाने की विधि इजाद की गई है. गौ मूत्र कुष्ठ रोग, पेट के दर्द, सूजन, मधुमेह और यहां तक की कैंसर के इलाज में मददगार है। बुखार का इलाज करने के लिए इसे काली मिर्च, दही और घी के साथ लिया जाता है। माना जाता है कि त्रिफला, गोमूत्र और गाय के दूध का मिश्रण एनीमिया को दूर करने में मदद करता है। गाय जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं। जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं और मां लक्ष्मी का उस घर में वास माना जाता है। गाय हमारी धरोहर है। गाय भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व की माता है। गाय भारतीय संस्कृति के रोम रोम में बसी है। गाय पर सभी देवी देवताओं का वास है। अमेरिका अपने गिरेबान में झांक कर देखे कि इतना ही पशु प्रेम है तो भारत से ज्यादा मांस अमेरिका में क्यों खाते हैं लोग ? अमेरिका या पेटा को भारत की संस्कृति और सभ्यता सिखने की जरुरत है। भारत में प्रत्येक पशु का सम्मान है। सांप और नंदी भगवान् शंकर का प्रतीक है। चूहा भगवान् गणेश का प्रतीक है। उल्लू देवी लक्ष्मी का प्रतीक है। हमारे यहां तो सारी प्रकृति ही देव् तुल्य है। अमेरिका अपनी गन्दी पाश्चात्य संस्कृति को बचाए , न की भारत की संस्कृति में दखलंदाजी करे। भारत को अभी पूर्ण रूप से पशुओं के कटने पर रोक लगानी चाहिए। भारत की सरकार को इसे लेकर एक अध्यादेश जारी करना चाहिए। दुधारू पशुओं का दूध निकालना पशुओं के प्रति सम्मान है न कि प्रताड़ना। ये प्रकृति प्रदत्त है। अतएव इसमें कोई बुराई नहीं है, बशर्ते पशुओं के कटने पर रोक लगनी चाहिए। अतएव हम कह सकते हैं कि दुधारू पशुओं से प्राप्त दूध शाकाहार की श्रेणी में आएगा। दूध पोषण का प्रतीक है। मानव का पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध है। स्वस्थ मानव ही पर्यावरण की देखभाल कर सकता है। पोषित मानव ही पर्यावरण को संरक्षित करने में अहम् भूमिका निभाता है। मानव को पोषित रखने में दूध एक सम्पूर्ण आहार है। अतएव हम कह सकते है दूध हमारे पर्यावरण को सुदृढ़ करने सहायक साबित होता है। दूध के उत्पादन को बढ़ाने के लिए डेरी प्रोसेसिंग यूनिट/प्लांट को बढ़ाना होगा। डेरी प्लांट के ज्यादा संख्या में खुलने से दूध सप्लायर की मांग बढ़ेगी। ज्यादातर दूध सप्लायर गाँव से आते हैं ऐसे में एक ओर गाँव में रोजगार बढ़ेगा तो वहीँ शहरों में लगे डेरी प्लांट में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। ताजे दूध के उत्पादन में से लगभग 60 फीसदी की खपत मिठाई की दुकानों में होती है। देखा जाए तो दूध का सम्बन्ध स्वास्थ्य/पोषण के साथ-साथ पर्यावरण और आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। दूध का उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा। रोजगार बढ़ेगा तो लोग समृद्ध होंगे। समृद्धि होंगे तो वो पोषित होंगे। असमृद्ध लोग कुपोषित होते हैं। पोषण अच्छे स्वास्थ्य की जननी है। दुग्ध उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर स्थित है। सत्र 2001 में, विश्व दुग्ध दिवस को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा वैश्विक भोजन के रूप में दूध के महत्व को पहचानने और हर साल 1 जून को डेयरी क्षेत्र का जश्न मनाने के लिए पेश किया गया था। इसलिए विश्व दुग्ध दिवस 2001 से प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। इस बार विश्व दुग्ध दिवस की 22 वीं वर्षगांठ है। "सुरक्षित दूध - सुरक्षित राष्ट्र; डेयरी उद्योग परिप्रेक्ष्य" को प्रभावी बनाने पर जोर देने की जरुरत है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का उद्देश्य डेयरी के लिए कम कार्बन भविष्य बनाने में मदद करके,दुनिया में डेयरी फार्मिंग को फिर से पेश करना है। यह दिन (1 जून) लोगों का दूध पर ध्यान केंद्रित करने और दूध व डेयरी उद्योग से जुड़ी गतिविधियों को प्रचारित करने का अवसर प्रदान करता है। दूध की महत्वता के माध्यम से विश्व दुग्ध दिवस इस उत्सव के द्वारा बड़ी जनसंख्या पर असर डालता है। कोरोना महामारी में हल्दी वाले दूध ने लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाया था। ये वही दूध था जो दुधारू पशुओं से प्राप्त होता है। कोरोना महामारी में लोगों ने दूध और हल्दी का प्रयोग कर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ाया था। दूध की भारी मांग को पूरा करने के लिए भारत में 1970 के दशक में श्वेत क्रांति जिसे ऑपरेशन फ्लड के रूप में जाना जाता है की शुरुआत हुई थी। इसने भारत को दूध की कमी वाले राष्ट्र से दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादकों में बदल दिया। इतनी अधिक मात्रा में दूध के उत्पादन के लिए उतनी ही संख्या में दुधारू पशुओं का होना भी जरुरी है। चूँकि दूध एक महत्वपूर्ण आहार है इसलिए स्वास्थ्य के लिहाज से इसे हर व्यक्ति को लेना चाहिए। दूध की शुद्धता अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है। भारत विश्व का नंबर वन दुग्ध उत्पादक देश है। भारत में दूध का उत्पादन 14.5 करोड़ लीटर लेकिन खपत 66 करोड़ लीटर है। इससे साबित होता है की दूध में मिलावट बड़े पैमाने पर हो रही है। दक्षिणी राज्यों के मुकाबले उत्तरी राज्यों में दूध में मिलावट के ज्यादा मामले सामने आए हैं। दूध में मिलावट को लेकर कुछ साल पहले देश में एक सर्वे हुआ था। इसमें पाया गया कि दूध को पैक करते वक्त सफाई और स्वच्छता दोनों से खिलवाड़ किया जाता है। दूध में डिटर्जेंट की सीधे तौर पर मिलावट पाई गई। यह मिलावट सीधे तौर पर लोगों की सेहत के लिए खतरा साबित हुई। इसके चलते उपभोक्ताओं के शारीरिक अंग काम करना बंद कर सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दूध में मिलावट के खिलाफ भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी की थी और कहा था कि अगर दूध और दूध से बने प्रोडक्ट में मिलावट पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश की करीब 87 फीसदी आबादी 2025 तक कैंसर जैसी खतरनाक और जानलेवा बीमारी का शिकार हो सकती है। मिलावटी दूध सफ़ेद जहर है। हमे यह नहीं भूलना चाहिए की "राष्ट्र के समुदाय का स्वास्थ्य ही उसकी संपत्ति है।" अतएव विश्व दुग्ध दिवस पर भारत को दूध में होने वाले मिलावट के बारे में सोचना होगा और इससे उबरने के लिए भारत सरकार को ठोस रणनीति बनाने की जरुरत है। जिससे भारत के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो सके और शुद्ध दूध लोगों तक पंहुच सके। दूध सात्विक होने कि वजह से शाकाहार है। यदि दूध मिलावट रहित है तो यह कहने में आश्चर्य नहीं होगा कि दूध, सात्विकता की निशानी है। दूध पर निर्भरता लोगों के स्वास्थ्य को दिव्य बनाती है। दूध पेय पदार्थों में श्रेष्ठ है। दूध,आहार की दिव्य अवस्था का दूसरा नाम है। अतएव हम कह सकते हैं कि दूध सात्विकता (पवित्रता) का प्रतीक है।
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी, प्रयागराज
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