गांव की गलियों में गुमनाम योद्धाओं की खोज में कुँअर नसीम रज़ा ख़ाँ जब ग़ाज़ीपुर में थाना दिलदारनगर अन्तर्गत मिर्चा गांव में पहुंचे तो वहाँ उनको कैप्टन अब्दुल गनी के बारे में पता चला। कैप्टन गनी के वालिद जनाब सुल्तान ख़ाँ अंग्रेजी फौज में सुबेदार थे। बालक ग़नी ख़ाँ भी कुशाग्र बुद्धि के थे इन्होंने उस समय कानून में स्नातक पढ़ाई पास की। लॉ करने के बाद ग़ाजीपुर कचहरी में ही वकालत शुरू कर दी थी। चन्द दिनों में ही नामवर वकीलों में इनका नाम शुमार होने लगा। गनी ख़ाँ पढ़े-लिखे, लम्बे-चौड़े कद के पहलवान किस्म के नौजवान थे। दिल में आर्मी ज्वाइन करने की इच्छा थी। अंग्रेजों ने ब्रिटिश आर्मी में नियुक्ति प्रदान की सिकन्दराबाद से फौजी ट्रेनिंग प्राप्त कर इनकी पहली पोस्टिंग नवी जाट रेजीमेंट पंजाब में हुई और फिर तरक्की करते हुए कैप्टन पद तक जा पहुंचे थे। कैप्टन गनी साहब भी छुट्टी पर गांव आये थे। 1940 में ही ग़ाज़ीपुर में फारवर्ड ब्लॉक की शाखा कायम हुई। नेता जी सुभाषचंद्र बोस कलकत्ता से ग़ाज़ीपुर में आये। उनकी जोशीली भाषण सुनकर ज़िले के सैकड़ों युवक आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे। आजादी की लड़ाई तेज हो गई। इधर गनी ख़ान को देश के प्रति गहरा लगाव था। उनकी भक्ति कभी कम नही हुई थी भारत को आजाद कराने के लिए दिल में उमंगे पैदा होने लगी थीं। जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोला तो गनी साहब भी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। नेताजी के साथ देश को आजाद कराने हेतु अपने जीवन को दांव पर लगाने वाले तेज तर्रार अब्दुल गनी ख़ाँ अंतिम समय तक नेताजी के साथ रहे। जब 1945 में जापान की हार हुई तो नेताजी अज्ञात यात्रा पर निकल गए। आजाद हिंद फौज की गिरफ्तारी के बाद भी कैप्टन गनी जब गिरफ्तार नही हुए तो अंग्रेजी खुफिया एजेंसीयो ने इनकी खोजबीन प्रारम्भ कर दी। नेताजी के खास सहयोगी गनी ख़ाँ जब आजादी मिलने के बाद भी नही लौटे तो परिजनो ने अन्य आजाद हिंद फौजियों से उनके बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी। कलकत्ता से एक फौजी युसूफ गनी खान की तलाश में जब गाजीपुर पहुँचा तो पता चला कि गनी ख़ाँ अभी तक लौटे ही नहीं। तब उसने बताया कि मैं गनी ख़ाँ का अर्दली था, मैने ही उन्हें नेताजी के साथ अज्ञात यात्रा पर जाने के लिए नेताजी के पास छोड़ा था, साथ में सरकारी डॉक्टर रशीद भी थे।
भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक तो आजादी के महानायक नेताजी सुभाष का आज तक पता नही चला और दूसरे नेताजी के अनन्य सहयोगी कैप्टन अब्दुल गनी का। गनी ख़ाँ की पत्नी फातिमा बीबी अपनी आंखों में उनके इंतजार का सपना लेकर इस दुनिया से रुखसत हो गयीं। अब्दुल गनी ख़ाँ के बेटे अब्दुल कादिर ख़ाँ ने आजीवन अपने पिता का इंतजार किया। लम्बे समय तक मिर्चा गांव के प्रधान रहे, लेकिन दरवाजे की हर आहट में अपने पिता गनी ख़ाँ को ही ढूंढते रहे। आज 95 साल के हो चुके हैं लेकिन नेताजी सुभाष का आह्वान उनकी रगों में है और अपने पिता के लौटने का इंतजार आंखों में! अब्दुल गनी ख़ाँ को सरकार गुमशुदा मानती है। देश को आजादी दिलाने वाले गनी ख़ाँ का 1945 के बाद पता न चलना सीना चाक कर देता है। आज उनके पौत्र एडवोकेट जावेद ख़ाँ भी अपने दादा का इंतजार कर रहे हैं। इतिहास ने इस नायक के साथ न्याय नही किया।
भारतीय अवाम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कुँअर नसीम रज़ा ख़ाँ ने यूपी सरकार से मांग की है कि मिर्चा गांव में कैप्टन अब्दुल गनी के नाम पर सड़क, आजाद हिंद स्मृति स्तम्भ और गेट बनाया जाय ताकि आजादी दिलाने वाले असली नायको का इतिहास देश सदा याद रख सके।
कुँअर नसीम रजा ने कहा कि कांग्रेस आजाद हिंद फौज का इतिहास छुपाना चाहती थी ताकि मुसलमान नायको का इतिहास खत्म किया जा सके। वो तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे जिनकी वजह से आज भी मुस्लिम योद्धाओ का गौरव पूर्ण इतिहास सामने आ रहा है।
चौखट प्रणाम अभियान में जिला महासचिव मास्टर अफरोज ख़ाँ महाचच भी शामिल थे। जब भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की महान गाथा लिखी जाएगी तब कैप्टन गनी का भी इतिहास जरूर याद किया जाएगा। भले ही गनी ख़ाँ के न लौटने का ग़म सबको है लेकिन तसल्ली इस बात की है जो नेताजी सुभाष का हुवा होगा वही गनी का भी हुवा! नेताजी के साथ अमर हो गए अब्दुल गनी ख़ाँ।
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