कुछ समय पहले तक ड्रोन को महंगे सैन्य उपकरण या छोटे मनोरंजक खिलौनों के रूप में देखा जाता था। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां में काफी बदलाव आया है, क्योंकि ड्रोन, जिसे आधिकारिक तौर पर सुदूर चालित हवाई प्रणाली (रिमोटली पाइलेटेड एरियल सिस्टम, आरपीएएस) के रूप में जाना जाता है, कई उद्योगों के अनुप्रयोगों के लिए एक व्यावहारिक समाधान के रूप में सामने आया है। ड्रोन के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव का मुख्य कारण है– ड्रोन की लागत प्रभावी तरीके से मांग के अनुसार उड़ान के जरिये डिजिटल डेटा देने की क्षमता।

हालांकि, ड्रोन का विकास, अपनाने का तरीका और उपयोग; अभी प्रारंभिक अवस्था में है। लेकिन, यह भी सच है कि ड्रोन नए तरीकों पर आधारित प्रभावी समाधान प्रदान कर रहे हैं,  जो कागज़ और कलम से संचालित होने वाले पुराने तरीकों के स्थान पर परिचालन को डिजिटल युग में ले जा रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों में ड्रोन कई सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों का एक अभिन्न अंग बन गए हैं; विशेष रूप से उद्योग के क्षेत्रों में, जो नयी तकनीक को अपनाने में हमेशा असफल रहते हैं, कारण चाहे जो भी रहे हों। ड्रोन कुशल और समयबद्ध तरीके से सुस्त, अस्वच्छ व खतरनाक काम कर रहे हैं और इस तरह से काम करने के पारंपरिक तरीकों के एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आये हैं।

ड्रोन के कुछ मौजूदा अनुप्रयोगों में निगरानी और सुरक्षा, महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों का निरीक्षण और निगरानी, सर्वेक्षण एवं लॉजिस्टिक्स आदि शामिल हैं। ये अनुप्रयोग कई उद्योग क्षेत्रों से सम्बंधित हैं, जैसे रक्षा और आतंरिक सुरक्षा, कृषि, तेल और गैस, ऊर्जा व उपयोगिता, दूरसंचार, भू-स्थानिक सर्वेक्षण, खनन, निर्माण, परिवहन आदि। भारत में इन क्षेत्रों में ड्रोन तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया प्रारंभिक अनुसंधान चरण से एक ऐसे चरण में पहुंच गयी है, जहां व्यापार जगत को यह अनुभव हुआ है कि इसकी क्षमता व संभावना का उचित उपयोग किया जा सकता है। अब व्यापार जगत इसे अपनाने के लिए तैयार है।

आज, भारत में ड्रोन का उपयोग; सटीकता से खेती के लिए फसल के स्वास्थ्य की निगरानी तथा सैकड़ों किलोमीटर लम्बी गैस पाइपलाइनों का निरीक्षण करने से लेकर सीमा पर सुरक्षा प्रदान करने एवं समय पर महत्वपूर्ण स्वास्थ्य आपूर्ति करने से जुड़े क्षेत्रों में किया जा रहा है। भारत सरकार स्वामित्व योजना के हिस्से के रूप में भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप देने,  खदानों तथा राजमार्ग निर्माण में ड्रोन सर्वेक्षण के उपयोग को अनिवार्य करने और कृषि में बदलाव के लिए ड्रोन शक्ति व किसान ड्रोन पहल को बढ़ावा देने के क्रम में ड्रोन के व्यापक उपयोग के माध्यम से इस तकनीक का प्रारंभिक उपयोग शुरू कर चुकी है। उपयोग के विविध क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए, अनुमान है कि देश में ड्रोन और संबंधित समाधानों का बाजार अगले 3-4 वर्षों में ₹15,000 करोड़ से अधिक का हो जाएगा।

इस उभरते और रणनीतिक प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता को स्वीकार करते हुए, सरकार ने इस दशक के अंत तक भारत को वैश्विक ड्रोन का हब बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे ध्यान में रखते हुए, नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ड्रोन नियम 2021 से शुरू करते हुए, देश में ड्रोन के निर्माण और परिचालन को उदार बनाने के लिए कई नीतियों और विनियमों को पेश किया है। ड्रोन प्रौद्योगिकी की क्षमता, आपूर्ति और प्रसार को बढ़ाने के लिए उद्योग जगत को इसी समर्थन की आवश्यकता थी। इस क्षेत्र के द्वारा देश के युवाओं के लिए नए जमाने के रोजगार के अवसर भी पैदा किए जा रहे हैं। ड्रोन उद्योग के विकसित होने से निकट भविष्य में प्रत्यक्ष रोजगार के 10,000 से अधिक अवसरों के पैदा होने की संभावना है, जिनमें ड्रोन पायलट, डेटा विश्लेषक, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकास व विनिर्माण, रख-रखाव एवं रिपेयर तकनीशियन शामिल हैं।

एक बड़ा संभावित बाजार, सॉफ्टवेयर और समाधान संबंधी विकास में एक मजबूत ताकत तथा ड्रोन-सेवा प्रदाता के लिए तकनीकी कार्यबल की उपलब्धता आदि कारणों से भारत के पास ड्रोन-आधारित समाधान के निर्माण एवं वितरण के लिए उपयुक्त प्लेटफार्म और संसाधन मौजूद हैं।     

नई ड्रोन और ड्रोन-प्रतिरोधी प्रौद्योगिकियों के परीक्षण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी में विशिष्ट और सैंडबॉक्स परीक्षण स्थल बनाना तथा दृष्टि से परे (बीवीएलओएस) परिचालन जैसे जटिल संचालन का परीक्षण से जुड़े अवसर, इस विकास को गति दे सकते हैं एवं वैश्विक कंपनियों को आकर्षित कर सकते हैं।

भारत को कल-पुर्जों के निर्माण इकोसिस्टम (बैटरी, इलेक्ट्रिक मोटर, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स और सेंसर) को भी आकर्षित करना चाहिए, जिससे ड्रोन उत्पादों के निर्माण में और इसे बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। इस प्रकार यह क्षेत्र विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा। ड्रोन, मुख्य रूप से मोबाइल फोन और बिजली चालित वाहनों का मिश्रण होता है, इसलिए इन क्षेत्रों में कल-पुर्जों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि ड्रोन निर्माण को भी जरूरी बढ़ावा मिल सके।

भारत में ड्रोन क्षेत्र का भविष्य उज्ज्वल है। अगले कुछ वर्षों में ड्रोन को कितने बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है, यह महत्वपूर्ण है। उद्योग जगत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ड्रोन अंतिम उपयोगकर्ता के लिए उपयोगी हो तथा एक जिम्मेदार व सुरक्षित तरीके से ड्रोन के इस्तेमाल को बढ़ावा मिले।

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नील मेहता

(लेखक एस्टेरिया एयरोस्पेस के निदेशक और सह-संस्थापक हैं)

श्रोत; पीआईबी लखनऊ

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