सरकार चाहे जिसकी हो। मिथक नहीं टूट सकते। 'धर्म पथ, न्याय पथ, पारदर्शिता, ईमानदारी, और नियमानुसार 'इन शब्दों का असल अर्थ गुम हो चुका है। सुशासन और कानून का राज, निष्पक्ष कार्रवाई उतनी ही झूठी हो चुकी है...जितना 'सफेद कोयला'। इस संशय को दूर करना हो तो आप लोग श्रावस्ती चले आइए। इसकी असलियत का पता चल जाएगा। 
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के सुशासन व  'भ्र्ष्टाचार मुक्त ' प्रदेश की मंशा पर यहां के अधिकारी व कर्मचारी पलीता लगा रहे हैं।
रिश्वतखोर तो यहां अव्वल दर्जे के बेशर्म हैं ही, साथ ही  जिम्मेदारों का धृतराष्ट्र बनना भी भ्र्ष्टाचार व बेईमानी को बढ़ाता है। बड़े बड़े आयोजनों में विशिष्ट अतिथि बनकर सदाचार का  पाठ पढ़ाने वाले भी भ्र्ष्टाचार के बियाबान में भटके नजर आ रहे हैं।।  हां, सबसे बड़ी बात तो यह है कि जो जितना बड़ा बेईमान  है वह उतनी ही ऊंची आवाज में  ईमानदार बनने  की घोषणा व ढकोसला करता है।
अब देखिए- इकौना तहसील के किड़हौंना गांव का मामला। एक हदबरारी के मामले में राजस्व निरीक्षक व लेखपाल ने नापी व रिपोर्ट लगाने के लिए 20, 000 रूपये ले लिए। नापी तो कर दी , लेकिन राजस्व निरीक्षक ने रिपोर्ट नहीं लगाई। पीड़ित जब  तहसील में कानूनगो से मिला तो उसे डांटकर भगा दिया गया।
रिपोर्ट नहीं लगी तो पीड़ित ने एसडीएम से शिकायत की। शिकायत से नाराज होकर कानूनगो ने लेखपाल से साज कर गलत रिपोर्ट लगा दी।
दिलचस्प बात यह है कि पीड़ित की जो  पैरोकारी कर रहा था उसी का अवैध कब्जा दिखा दिया गया। 
अफसरों के दरबार में पीड़ित चिल्ला- चिल्ला कर  रिश्वत देने की बात कह रहा है,लिखा पढ़ी में भी दिया है, लेकिन जिम्मेदार कानूनगो व लेखपाल पर कार्रवाई करने के बजाय मौन साधे हैं। 
दूसरी घटना गिलौला ब्लॉक की देखें। गरीबों के खाद्यान्न में लूट मची है।
सेंधमारी करने व एसडीएम के नाम पर 500 रूपये लेने वाले गोदाम प्रभारी के खिलाफ कोटेदारों की शिकायत की जांच शासन व प्रशासन के बियाबान में गुम होता नजर आ रहा है।
तीन रूपये प्रति यूनिट लेने वाला सप्लाई इंस्पेक्टर अभी भी जमा है, जबकि इसकी शिकायत चुनाव से पहले जनप्रतिनिधि डीएम व डीएसओ से भी कर चुके हैं।।
ये दो मामले तो सिर्फ बानगी हैं। कमोवेश यही हाल पूरे जिले का है।हाल फिलहाल श्रावस्ती में भ्र्ष्टाचार पर पर अंकुश कैसे लगेगा , यह लखटकिया सवाल कभी सुलझेगा या जनता के धैर्य का पैमाना छलकेगा!
विजय द्विवेदी

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