---प्रदीप दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद राजनीतिक सरगर्मियां पूरे शवाब पर है। जनता जनार्दन के मन मस्तिष्क पर छा जाने के लिये राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची है मगर वैश्विक महामारी कोविड-19 की तीसरी लहर नेताओं की इस मुहिम के रास्ते में बाधा बनी हुयी है। चुनाव आयोग ने महामारी को देखते हुये फिलहाल 15 जनवरी तक जनसभाओं पर रोक लगा रखी है हालांकि हर राजनीतिक दल के पांच पांच प्रतिनिधियों को घर घर जाकर कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुये जनसंपर्क करने की इजाजत है। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुये इन पाबंदियों के आगे भी जारी रहने के प्रबल आसार हैं। ऐसे में प्रचार प्रसार के लिये सोशल मीडिया राजनीतिक दलों के पक्ष डिजिटल कैंपेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार है।
सूचना प्रौद्याेगिकी (आईटी) विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा विधानसभा चुनाव में फेसबुक लाइव,यू ट्यूब,इंस्टाग्राम,कू,ट्विटर और व्हाट्सएप की भूमिका किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में हवा बनाने में महत्वपूर्ण हो सकती है। कुछ राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया की अहमियत को भांपते हुये पहले से ही अपनी रणनीति पर काम करना भी शुरू कर दिया था जबकि कुछ ने देर से ही सही मगर अपनी परंपरागत प्रचार की रणनीति पर बदलाव करते हुये सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है। हालांकि कई छोटे एवं मझोले दलों ने भी सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार के अस्त-शस्त्रों है को धार देना शुरू कर दिया है। आईआईटी कानपुर में आईटी सेल में कार्यरत नवनीत बताते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में करीब 70 फीसदी मतदाता सेल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल करते है। हर पार्टी का लक्ष्य सोशल मीडिया के इन प्लेटफार्म के जरिये मतदाताओं के दिलो दिमाग पर छाना है। हालांकि इनमें यू ट्यूब स्ट्रीम और व्हाट्सएप की भूमिका इसलिये भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इन दो प्लेटफार्म का इस्तेमाल आम लोगों के बीच धड़ल्ले से होता है। इसके लिये अधिक तकनीकी जानकारी की जरूरत नहीं होती। व्हाट्सएप के अलावा गूगल के यू ट्यूब एप्लीकेशन की मांग है।
मुफ्त में आसानी से डाउनलोड किये जाने वाले इन एप्लीकेशन की मांग उत्तर प्रदेश में जबरदस्त है। स्वदेशी ‘कू’ भी तेजी से अपनी पहुंच बना रहा है हालांकि अभी उसे व्हाट्सएप का मुकाबला करने में समय लगेगा। वहीं यू ट्यूब पर उपलब्ध हर जानकारी के कारण यह एप्लीकेशन भी यूजर्स को खूब पसंद आता है। इसका डाटा रेट भी कम होता है यानी इंटरनेट की गति सुस्त होने पर भी इसे सर्फ किया जा सकता है। अपने चैनल को लाइव करने के लिये कम से कम एक हजार सब्सक्राइबर की बाध्यता होती है जिसे डिजिटल प्रमोशन एजेंसियों की मदद से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक बार चैनल लाइव होने पर पार्टी को बस अपने कार्यकर्ताओं के बीच लिंक शेयर करना होता है और इच्छुक लोग इससे जुड़ते चले जाते है जिससे राजनीतिक दल के नेता अथवा प्रत्याशी अपनी बात को हजारों लाखों के बीच आसानी से पहुंचा सकता है।
फेसबुक लाइव भी ज्यादा समूह को एकत्र करने का एक सशक्त माध्यम है हालांकि यह एप्लीकेशन यू ट्यूब के मुकाबले में कुछ भार लेता है। इस पर लाइव प्रसारण से जुड़ने के लिये मोबाइल फोन अथवा लैपटाप का हार्डवेयर महती भूमिका निभाता है। कम मेमोरी अथवा कम तीव्रता का प्रोसेसर होने पर फेसबुक लाइव सुस्त हो सकता है। हालांकि यू ट्यूब अथवा फेसबुक लाइव पर रैली की रिकार्डिंग के छोटे छोटे वीडियो के लिंक बना कर इसे व्हाट्सएप ग्रुप में भेजना भी राजनीतिक दलों के लिये उपयोगी साबित हो सकता है।
ट्विटर भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। किसी भी संदेश को कम शब्दों में व्यक्त करने अथवा फोटाे और वीडियो क्लिप्स के लिये आमतौर पर नेता ट्विटर का इस्तेमाल करते रहे हैं। ट्विटर के यूजर्स की भी खासी तादाद है हालांकि विस्तार के साथ अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाने में ट्विटर प्रभावी नहीं है वहीं युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय इंस्टाग्राम भी यूपी चुनाव में प्रभावी नहीं हो सकता है। यूं कहा जाये कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्रारूपों को लेकर भारतीय यूजर अभी भी बहुत ज्यादा जागरूक नहीं है। इसके लिये राजनीतिक दलों को बड़ी आबादी तक पहुंचने के लिये प्रचलित एप्लीकेशन का सहारा लेना होगा जिसमें बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम साबित होगी क्योंकि वे ही ग्रुप बनाकर अपनी पार्टी अथवा प्रत्याशी का लिंक शेयर करेंगे जिससे लोगों तक उनकी बात पहुंच सके।
एक अन्य आईटी एक्सपर्ट चंद्रगौरव ने कहा कि वैश्विक महामारी के कठिन समय में शारीरिक रूप से मिलना जुलना मुश्किल हो सकता है। मौजूदा दौर में टीवी से कई गुना अधिक सोशल मीडिया को चाहने वाले हैं और यही कारण है कि चुनाव प्रचार का कम खर्चीला और बेहतरीन साधन बन कर फेसबुक और यू ट्यूब लाइव बन कर उभर रहे है। कुछ राजनीतिक दलों ने तो बाकायदा अपने डिजिटल वार रूम बना रखे है जहां उनकी आईटी सेल की टीम इन संसाधनो का बेहतरीन इस्तेमाल कर रही है वहीं कई छोटे दलों ने अपनी इस मुहिम को परवान चढ़ाने के लिये डिजिटल विज्ञापन एजेंसियों की मदद ली है। ये एजेंसियां न सिर्फ यू ट्यूब लाइव के लिये जरूरी न्यूनतम एक हजार सब्सक्राइबर बनाने में सहयोग करती है बल्कि एडवरटाइजिंग के जरिये पार्टी विशेष की क्लिप्स को फ्री यू ट्यूब सब्सक्राइबर को देखने के लिये बाध्य करती हैं। यू ट्यूब स्ट्रीम की तुलना में फेसबुक लाइव में रीच पार्ट में बढती है जो लाखों तक भी जा सकती है। मसलन फेसबुक लाइव में अगर किसी सभा में 50 लोग शामिल होते है और एक हफ्ते में हजार और एक महीने में दस लाख और यह रीच बन कर आ जाती है। डिजीटली प्रमोशन का यह बेहतर हथियार साबित होता है। फेसबुक लाइव में कोई पेड स्लाट नहीं होता मगर मार्केटिंग वाले डिजिटल प्रमोशन कर रीच यानी पहुंच बढा देते है। इसके लिये फेसबुक ग्रुप पर भी नजर बनानी होती है जैसे हर राजनीतिक दल ने अपने कई कई नामों से फेसबुक ग्रुप बना रखे है और प्रत्येक ग्रुप में हजारोे की संख्या में सदस्य बने है। फेसबुक लाइव होने पर इन ग्रुप को शेयर करने से आप वर्चुअल रैली को सफल बना सकते है। फेसबुक ने पेड इंवेंट भी शुरू किया है जिसमे वह रीच बढाने के लिये तीन रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से लेता हैं। इसके लिये फेसबुक में बूस्ट पोस्ट का आप्शन होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया पर न केवल बेतहाशा खर्च किया जा रहा है बल्कि डेटा विश्लेषण पर विमर्श हो रहा है. वहीं, पार्टियां अपने ग्रामीण कार्यकर्ताओं तक को टेक सैवी बनाने की कोशिश कर रही हैं। आईटी विशेषज्ञाे के मुताबिक स्मार्ट फोन, सोशल मीडिया और प्रचलित माध्यमों से वर्चुअल रैलियों और चुनावी अभियानों की शुरूआत होने के बाद यह बाज़ार बढ़ेगा और नई तकनीकें या आइडिया आएंगे। सोशल मीडिया टीम के लिए भी प्रचार कार्य का लक्ष्य निर्धारित किया जा रहा है। रणनीतिकारों का मानना है कि वर्चुअल रैली का विस्तार अधिक है और इसमें संसाधन भी कम लगता है। यही नहीं बड़े नेता अपने घरों से या फिर दफ्तरों से ही आम लोगों को सीधे संबोधित कर सकते हैं। सबसे बड़ा प्रभाव तो यह होता है कि लोगों को इंतजार नहीं करना पड़ता है। आम चुनावी रैली की अपेक्षा इसमें स्थानीय लोगों की सहभागिता भी अधिक होती है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में यह प्रभावी भूमिका निभा सकता है। एक राजनीतिक दल के सोशल मीडिया प्रकोष्ठ से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सोशल मीडिया के चारों प्लेटफार्म पर पार्टी की सक्रियता है। पार्टी के पास स्थानीय स्तर पर प्रचार के लिए वॉर रूम भी हैं, वहां बैठी टीमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि की मदद से अपनी पार्टी के पक्ष में जनता का समर्थन जुटा रही है वहीं एक अन्य पार्टी लंबे समय से स्वयंसेवकों को डिजिटली प्रशिक्षित कर रही है। पार्टी के मुताबिक, वे गांव-गांव जाने की योजना बना रहे थे, लेकिन अब फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब के जरिए लोगों तक पहुंचेंगे। राजनीतिक दलों का कहना है कि अगर जनता सुरक्षित है तो चुनाव भी होंगे। सोशल मीडिया के दिग्गजों का मानना है कि जिन लोगों ने 2019 में सबसे ज्यादा तैयारियां की होंगी, उन्हें ही सबसे ज्यादा इस चुनाव में फायदा मिलने वाला है। हालांकि सभी राजनीतिक दलों का अपना-अपना दावा है कि वह पूरी तरीके से डिजिटल वार रूम के माध्यम से चुनाव लड़ने को न सिर्फ तैयार हैं बल्कि बहुत तेजी से आगे भी बढ़ रहे हैं।
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