आजादी की जंग को नई धार देने वाला महानायक

 

डॉ.शंकर सुवन सिंह

 

सुभाष का शाब्दिक अर्थ उदय होता है। उदय अर्थात उगना(ऐराइस) सुभाष चंद्र बोस उगते हुए सूरज के सामान थे। सूर्य रूपी सुभाष का उदय अंधकार रूपी गुलामी को ख़त्म करने के लिए हुआ था। सुभाष का उदय ही गुलामी की जंजीर में जकड़े हुए भारत को स्वतंत्र कराने के लिए हुआ था। हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ "उपनिषद"– बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28 में एक श्लोक है- असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय अर्थ- मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ राष्ट्र को असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरत्व का पाठ पढ़ाने वाले सुभाष जी शानदार व्यक्तित्व के धनी थे। राष्ट्र प्रेम में मृत्यु ,अमरत्व की ओर ले जाती है। अतएव राष्ट्र भक्ति से बढ़कर कोई भक्ति नहीं होती है। राष्ट्र भक्ति में जान भी गवानी पड़े तो वह मृत्यु नहीं अपितु अमरत्व कहलाती है। वर्ष 2022 में भारतीय स्वतंत्रता के प्रमुख सेनानी नेता जी सुभाषचन्द्र बोस की 126 वीं जयंती है। भारत में प्रत्येक वर्ष के 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस की जयंती बड़े ही धूम धाम से मनाई जाती है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रांत में कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी दास बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। प्रारम्भिक शिक्षा कटक में प्राप्त करने के बाद यह कलकता में उच्च शिक्षा के लिये गये। नेताजी सुभाष चंद्र बोस,स्वामी विवेकानंद शिक्षण संस्थान से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सुभाष चन्द्र बोस भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की जंग को नई धार दी थी। भारत को आजाद कराने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस, भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती। सुभाष चंद्र बोस वर्ष 1920 में भारतीय सिविल सेवा (आई सी एस) परीक्षा में चौथा स्थान पाए थे। अंग्रेजी हुकूमत के समय आई सी एस परीक्षा पास करने वाले ये पहले भारतीय थे। सुभाष जी ने दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर से मुलाकात की थी। सुभाष जी की देशभक्ति देख कर हिटलर उनके बड़े प्रशंसक बन गए थे। सुभाष चंद्र बोस को "नेता जी" कहा जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ होता है नेतृत्व करने वाला अर्थात अगुआ या अगुआई करने वाला। यह उपाधि,भारत में सिर्फ सुभाष चंद्र बोस को ही मिली है। जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को पहली बार 'नेताजी' कहकर बुलाया था। कर्मठ क्रांतिकारियों में उस समय भगत सिंह भी भारत को आज़ाद कराने के लिए जी जान से लगे थे। अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। नेता जी भगत सिंह को फाँसी की सजा से बचाना चाहते थे। उस समय महात्मा गाँधी ने अंग्रेज सरकार से समझता किया और सभी कैदियों को रिहा करवा दिया लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को रिहा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई। नेता जी ने महात्मा गांधी को अंग्रेज सरकार के साथ करार तोड़ने को कहा था लेकिन गांधी जी नहीं माने। इसके बाद नेता जी और महात्मा गांधी में अनबन हो गई। यही वजह नेता जी और गांधी जी में मतभेद का कारण बनी थी। वर्ष 1936 . में नेता जी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दवाब डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, आयरलैंड में वलेरा, फ्रांस में रोमा रोनाल्ड और जर्मनी के शासक से मुलाक़ात की। दुनिया इन तानाशाहों से डरती थी पर नेता जी ऐसे शख्स थे कि इन तानाशाहों से भारत की आज़ादी के लिए मदद मांगने पंहुचे। वर्ष 1938 . में हरिपुर अधिवेशन में नेता जी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। रविंद्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन में नेता जी का सम्मान किया। वर्ष 1939 में नेता जी ने महात्मा गांधी के उम्मीदवार सीतारमय्या को हराकर एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर कब्जा किया। नेता जी ने नवंबर 1941 . में स्वतंत्र भारत केंद्र और स्वतंत्र भारत रेडियो की स्थापना की थी। जिसका लक्ष्य आज़ादी की लड़ाई के लिए भारत में सन्देश पहुँचाना था। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज करने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई थी। आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो (जापान) में 1942 . में रास बिहारी बोस ने की थी। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध (1 सितम्बर 1939 2 सितम्बर 1945) के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था। आजाद हिंद फौज का जापान ने काफी सहयोग दिया था। देश के बाहर रह रहे लोग आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए। सुभाष चंद्र बोस के रेडियो पर किए गए एक आह्वान के बाद रास बिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को इसका नेतृत्व सौंप दिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की। नेताजी ने ये घोषणा सिंगापुर के कैथे सिनेमा हाल में की थी। स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की ऐतिहासिक घोषणा सुनने के लिए इस सिनेमा हाल में लोग खचाखच इकट्ठे थे। सुभाष चंद्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष तीनों थे। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी। आजाद हिन्द फ़ौज के संरक्षक के रूप में क्रमशः मोहन सिंह- रास बिहारी बोस- सुभाष चंद्र बोस थे। कहने का तात्पर्य आजाद हिंद फौज की स्थापना का विचार सबसे पहले जनरल मोहन सिंह के मन में आया था। रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज को जिन्दा रखा और सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन और नेतृत्व किया। जुलाई 1943 में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने 'झांसी की रानी' रेजिमेंट बनाई थी। झांसी की रानी रेजिमेंट भारतीय राष्ट्रीय सेना की महिला रेजिमेंट थी। झांसी की रानी रेजिमेंट को लीड करने की जिम्मेदारी लक्ष्मी सहगल को सौंपा गया था, जिन्होंने खुद ऐसा करने की इच्छा जताई थी। नेताजी लक्ष्मी के बहादुरी से प्रभावित हुए और उन्हें कैप्टन बना दिया था। इससे स्पष्ट होता है कि नेता जी की फौज में पुरुष और महिलाएं दोनों थे। पुरुष और महिलाएं दोनों ने आज़ादी की लड़ाई में भरपूर योगदान दिया था। 21 मार्च 1944 . को 'चलो दिल्ली' के नारे के साथ आजाद हिंद फौज का हिन्दुस्तान की धरती पर आगमन हुआ। आजाद हिंद फौज एक 'आजाद हिंद रेडियो' का इस्तेमाल करती थी, जो लोगों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित करती थी। इस पर अंग्रेजी,हिंदी,मराठी,बंगाली,पंजाबी,पाष्तू और उर्दू में खबरों का प्रसारण होता था। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने ही पहली बार राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। अभी तक सुभाष चंद्र बोस(नेता जी) की मृत्यु का सही कारण पता नहीं लग पाया। मृत्यु का सही कारण पता लगाने के लिए भारत की सरकारें मुखर्जी आयोग से पूर्व दो जांच आयोग गठित कर चुकी हैं। सबसे पहले शाहनवाज कमेटी बनाई गई जबकि उसके बाद खोसला आयोग का गठन किया गया। शाहनवाज कमेटी नेता जी की मौत का सही पता लगा सकी। खोसला आयोग ने कई दस्तावेजों के आधार पर कहा था कि सुभाष चंद्र बोस(नेता जी)की मृत्यु के होने का कोई उचित साक्ष्य नहीं है। के.जी.बी. से जुड़े दो जासूसों ने 1973 में वॉशिंगटन पोस्ट को बिना अपना नाम बताए कहा था कि जापान के टैनकोजी मंदिर में रखी हुई अस्थियां नेता जी की नहीं हैं। नेता जी के भतीजे अमियनाथ ने खोसला आयोग को बताया था कि एक बार उन्हें ब्रिटिश अधिकारी ने फोन पर जानकारी दी थी कि 1947 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ रूसी अधिकारियों ने गलत और अपकृत्य व्यवहार किया था। सुभाषचंद्र बोस के भाई शरत चंद्र बोस ने 1949 में कहा था कि सोवियत संघ में नेता जी को साइबेरिया की जेल में रखा गया था तथा 1947 में स्टालिन ने नेता जी को फांसी पर चढ़ा दिया था। सुभाष चंद्र बोस के साथ विमान में यात्रा करने वाले कर्नल हबीब रहमान ने मृत्यु के कुछ दिन पूर्व यह स्वीकार किया था कि ताईवान में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा कि वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के कारणों का सही पता लगा पाई। आयोग की जांच पूर्ववर्ती सरकारों की निष्क्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है। वर्ष 2021 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन(23 जनवरी)को 'पराक्रम दिवस' के तौर पर मनाने का फैसला किया। अतएव वर्ष 2021 में सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 23 जनवरी को पराक्रम दिवस की शुरुआत हुई। भारत सरकार ने इसके लिए एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। पराक्रम दिवस भारत के युवाओ में राष्ट्र के प्रति प्रेम, भक्ति और बलिदान की भावना को जाग्रत करेगा। नेता जी ने राष्ट्र भक्ति के जज्बे को कभी मरने नहीं दिया। नेता जी ने भारतवासियों के दिल में राष्ट्र भक्ति के जज्बे को अमर कर दिया। अतएव हम कह सकते हैं कि नेता जी राष्ट्र भक्ति को अमरता प्रदान करने वाले महानायक थे। गुलामी की दीवार पर आखिरी हथौड़ा, नेता जी ने ही मारा था। अतएव हम कह सकते हैं कि नेता जी आज़ादी की जंग को नई धार देने वाले महानायक भी थे।     

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक

सहायक प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी, प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)

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