‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ
गुलिस्तां क्या होगा।’
शौक बहराइची की ये लाइनें आज के राजनीतिक
परिवेश में सटीक बैठती हैं।
जी हां, उत्तर प्रदेश सहित पांच
राज्यों में चुनावी बयार बहने लगी है। विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो जाने से हर
राजनीतिक पार्टियां इस चुनावी हवन कुंड में हवन करने के लिए तैयार हैं। महज 25 दिन
बचे चुनाव में लगभग एक चौथाई मतदाता अपने
मत का प्रयोग करेंगे। अगर देखा जाए तो यह
पांच राज्यों( यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, और गोवा) के विधानसभा चुनाव में सबसे यूपी की सबसे अहमियत
है क्योंकि यहां योगी के साख के अलावा यहां से 80 सीट लोगसभा में निर्वाचित होकर
जाते हैं जिससे अगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में काफी अहम हो जाता है। दुनिया के
सबसे बडे लोकतंत्र में होने जा रहे चुनावों में जनता को सोच-समझकर अपना वोट डालना
चाहिए। चुनाव का बिगुल बजते ही सभी राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन घोषणाओं से आपको
रिझाने की कोशिश कर रही हैं। अगर देखा जाए तो देश की कुल 4121 विधानसभा सीटों में
से 690 प्रत्याशी इस चुनाव में अपनी में अपनी किस्मत आजमाएगें मुफत वादों की झडी ने ठंड के इस मौसम यूपी में
सियासी गर्मी बढा दिया है। ऐसे में महत्वपूर्ण हो जाता है कि जनता रिझने के बजाए
काम करने वाले जनप्रतिनिधियों को वोट करें। आपको पता होना चाहिए कि इस लोकलुभावन
वादे के नाम पर राजनीतिक पार्टियां तो अपनी रोटी तो सेंक लेती हैं लेकिन जनता को
ये नहीं पता होता है कि बाद में उन्हीं से इसकी वसूली की जाती है और प्रदेश कर्ज
में डूब जाता है। विकास की राह कठिन हो जाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे का काम रूक जाता है। देश में आज महंगाई,बेराजगारी चरम पर है यही नहीं स्वास्थ्य ढांचा चरमरा रहा
है। 2014 के लोकसभा में और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने तमाम चुनावी
वादे जनता से करके अच्छे दिन के सपने दिखाये थे लेकिन जमीनी हकीकत से वो लुभावने
वादे काफी दूर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता
है कि जनता को लुभावने चुनावी वादों से दूर रहकर सही प्रतिनिधियों को चुनना
चाहिए। फलैश बैक में जाकर देखें तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव
में जिस तरह लुभावने वादे जनता से किये थे फ्री बिजली देने का उसी राह पर यूपी में
सत्तासीन भाजपा भी उसी राह पर चल पडी और इसकी शुरूआत योगी आदित्यनाथ ने छात्रों
को फ्री में टेबलेट और मोबाइल फोन देकर कर दी है। यही नहीं सीएम योगी ने बिजली की दर में भी कटौती करने का वादा किया
है। ऐसे में अन्य राजनीतिक पार्टियां कहां पीछे रहने वाली कोई
अगर देखे तो चुनाव का समय निकट आते ही विकास और समृद्धि
बनाम लोकलुभावन नीति के बीच का विवाद खुलकर सामने आ जाता है। ऐेसे में नेता और
जनता दोनों की रिस्पांसबिलिटी हो जाती है कि राजनीतिक दलों को वादे करते समय
सोचना चाहिए कि उससे विकास के स्तर पर क्या प्रभाव पडेगा और जनता को इस चुनावी
वादों से हटकर वोट करना होगा।
अंबरीश दिवेदी
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